विष्णुदेव साय की नियुक्ति को आदिवासी वर्ग को साधने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. ओबीसी वर्ग से नेता प्रतिपक्ष चुने जाने के बाद यह लगभग साफ हो गया था कि राज्य संगठन की बागडोर आदिवासी वर्ग को सौंपा जाएगा. विक्रम उसेंडी भी इसी रणनीति के तहत तब अध्यक्ष चुने गए थे, जब धरमलाल कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था. संगठन का मानना है कि सत्ता और संगठन में काम करने का अनुभव उनके पास है. साय के नेतृत्व में बीजेपी संगठन एक मजबूत विपक्ष की भूमिका का निर्वहन करता रहेगा.

प्रदेश अध्यक्ष के निर्वाचन के पहले जे पी नड्डा बीजेपी के पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए. तब यह सुनिश्चित हो गया था कि अब बीजेपी हाईकमान ही प्रदेश अध्यक्ष को मनोनीत करेगा. नड्डा के अध्यक्ष बनने के बाद से ही राज्य में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी. चूंकि ओबीसी वर्ग से धरमलाल कौशिक नेता प्रतिपक्ष बनाए गए थे, ऐसे में यह लगभग तय हो गया था कि आदिवासी वर्ग से ही प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति होगी. संगठन नेता इसके पीछे एक दलील यह देते हैं कि जिस आदिवासी वोट बैंक के बूते राज्य की सत्ता की दहलीज तक बीजेपी पहुंचती रही है, साल 2018 के चुनाव में यह वोट बैक बीजेपी से पूरी तरह खिसक गया. सभी सीटें कांग्रेस की झोली में चली गई. ऐसे में आदिवासी कोटे से ही अध्यक्ष बनाकर बीजेपी एक संदेश भी देना चाहती थी.

साल 2006 से 2019 तक विष्णुदेव साय प्रदेश अध्य़क्ष की बागडोर संभाल चुके हैं. 2013 में विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा के चुनाव जीतने के बाद भी राष्ट्रीय नेतृत्व ने विष्णुदेव साय को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी थी. उनके नेतृत्व में ही बीजेपी ने राज्य में लोकसभा चुनाव लड़ा था और 11 में से दस सीटों पर जीत दर्ज की थी. रायगढ़ लोकसभा सीट से लगातार चार बार जीत दर्ज कर चुके विष्णुदेव साय साल 2014 में मोदी मंत्रीमंडल में शामिल किए गए थे. केंद्रीय मंत्री बनाए जाने के बाद उनकी जगह धरमलाल कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था.
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